बुधवार, 25 जुलाई 2012

उतर गया जेनेरिक का जिन्न




सुनील शर्मा, बिलासपुर

जेनेरिक दवाइयों के जरिए महंगे इलाज को सस्ता बनाने का सरकारी दावा फेल होता नजर आ रहा है। राज्य में जेनेरिक दवा के नाम पर जेनेरिक-ब्रांडेड दवाओं की बिक्री की जा रही है। इनके एवज में दोगुने से अधिक कीमत ली जा रही है। इतना ही नहीं, सरकारी अस्पताल के मरीजों को झांसा देने के लिए रेडक्रास मेडिकल शॉप द्वारा इन दवाओं पर 40 फीसदी तक की छूट दी जा रही है।

 दवा में इतनी अधिक छूट मिलने से लोगों को यह पूरा माजरा समझ में नहीं आ रहा है। हमने बिलासपुर के रेडक्रास मेडिकल शॉप में पड़ताल की तो जेनेरिक दवा के नाम पर हो रही लूट का खुलासा हुआ। 

फिल्म अभिनेता आमिर खान के शो ‘सत्यमेव जयते’ के एक एपिसोड के बाद पूरे देश में मरीजों के लिए सस्ती दवाओं के रूप में जेनेरिक दवाइयां बेचने की मांग शुरू हुई है। इसी दौरान छत्तीसगढ़ में भी राज्य सरकार ने अंबिकापुर में जन औषधि केंद्र खोलकर वहां पहले से ही सस्ती दवा बिकने की बात प्रचारित की। लेकिन वहां जेनेरिक के नाम पर ब्रांडेड कंपनियों की दवा बेचने की शिकायत मिली। 

पिछले दिनों  जिला अस्पताल बिलासपुर  के  रेडक्रास मेडिकल शॉप में एक डाक्टर की पर्ची के आधार पर तीन दवाएं सिप्रोफ्लेक्सिन, डाइक्लोफिनेक और सिट्रेजीन मांगने पर इसी फार्मूले की सिप्रोडेक, रिएक्टिन और इंस्टेजिन टेबलेट दी गई। इन सभी को दुकानदार ने जेनेरिक दवा बताया। सिप्रोडेक-50 रुपए, रिएक्टिन 13.86 रुपए और इंस्टेजिन 20 रुपए सहित कुल 80 रुपए दुकानदार ने लिए। जबकि रैपर पर इनकी कीमत क्रमश: 64.02, 19.35 और 32 रुपए थी। दुकानदार ने 40 फीसदी छूट देने की बात कही। डिस्काउंट की आड़ में दुकानदार ने कई गुना अधिक कीमत की दवा थमा दी। हालांकि उसने बिल क्रमांक डीए-65618 में डिस्काउंट का जिक्र भी किया, लेकिन इस छूट के पीछे की असली कहानी कुछ और ही है। 

स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल दवाइयों का नया स्टाक नहीं आने का हवाला देते हुए इस मामले को अलग बता रहे हैं। आगे वे कहते हैं कि वर्तमान में रेडक्रास मेडिकल शॉप में पुराना स्टाक है। नया स्टाक आने पर नए सिरे से दर तय कर सस्ती दर पर जेनेरिक दवाइयां मरीजों को उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया जाएगा।

ऐसे ली जा रही अधिक कीमत

0 सरकार के ही जन औषधि केंद्र की सूची के मुताबिक सिप्रोफ्लेक्सिन 500 एमजी के 100 जेनेरिक टेबलेट की कीमत 215 रुपए है, जबकि दुकानदार ने जेनेरिक-ब्रांडेड के सिर्फ 10 टेबलेट देकर 50 रुपए ले लिए। तय दर के मुताबिक ये टेबलेट 21 रुपए के थे, यानी जेनेरिक की जो टेबलेट 2.15 रुपए में मिलती, वह 5 रुपए में बेची जा रही है।

0 डाइक्लोफिनेक सोडियम आईपी 50 एमजी की बात करें तो इसके 100 जेनेरिक टेबलेट का मूल्य 21 रुपए है और इसी फार्मूले की 10 टेबलेट देकर रेडक्रास मेडिकल शॉप ने 13.86 रुपए लिए, यानी कई गुना अधिक।
0 सिट्रेजीन की 100 जेनेरिक टेबलेट 99 रुपए में मिलती है, जबकि इसके 10 टेबलेट के लिए ही 20 रुपए लिए गए। 

...तो ब्रांडेड दवा ही सस्ती

जेनेरिक दवा के नाम पर जेनेरिक-ब्रांडेड दवा बेचकर लोगों को बेवकूफ ही बनाया जा रहा है। जानकारों के मुताबिक जेनेरिक ब्रांडेड के मुकाबले ब्रांडेड कंपनियों की दवाइयां सस्ती हैं। सिप्रोफ्लेक्सिन 500 एमजी में जीडस कंपनी के सिपोडेटक की कीमत 40.50 रुपए, लेबिन लेप्स कंपनी के सिपोलेब की 48 रुपए, नेटको के सिप्रोमेट की 45 रुपए, प्रोफिक के सिप्रोटम की 47 रुपए और मैक्लियोड्स कंपनी के कोफ्लाक्स के 10 टेबलेट की कीमत 39.68 रुपए है।

 इसी फार्मूले की जेनेरिक दवा देने की बात कहते हुए रेडक्रास मेडिकल शॉप ने 50 रुपए लिए, वह भी 40 फीसदी डिस्काउंट के साथ। जिस सिट्रेजीन फार्मूले की टेबलेट के लिए 20 रुपए लिए गए, उसकी ब्रांडेड कंपनी रिलायंस के सेटटॉप के टेबलेट की कीमत 9.50 रुपए, पिल के सिटीजेड की 16, बायो-माइक्रान के सेट्रिट की 14.90, इस्ट-वेस्ट के सेट्राजोल की 13 और भारतीय कंपनी खंडेलवाल के सेटनेज की कीमत सिर्फ 15 रुपए है। डाईक्लोफिनेक सोडियम आईपी 50 एमजी की ब्रांडेड दवा सिटाडेल कंपनी के डेलबिटोल के 10 टेबलेट की कीमत 7.42 रुपए, मूरेपेन के डिक्टो-डीटी की 7.50 तो इसी कंपनी के डाइक्लो की 9, जेबी केमिकल्स के ड्राइक्लोरेन की 10.92, इमक्योर के डाइक्लोमूव की कीमत 15 रुपए है। 

खोखले हुए दावे, मची है लूट

18 जून को रायपुर में हुई छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण विकास प्राधिकरण की पहली बैठक में मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने प्रदेश के सभी सरकारी जिला अस्पतालों में रेडक्रास सोसायटी की दवा दुकानों में शत-प्रतिशत जेनेरिक दवाइयां बेचने की बात कही थी। उन्होंने 15 दिनों के भीतर सभी रेडक्रास मेडिकल शॉप में जेनेरिक दवा उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे। अंबिकापुर के जिला अस्पताल में जेनेरिक दवा बिकने से मरीजों को लाभ होने का दावा किया गया था, लेकिन राज्य के दूसरे सबसे बड़े शहर और स्वास्थ्य मंत्री के गृह नगर में ही जेनेरिक दवा के नाम पर मरीजों से कई गुना अधिक कीमत ली जा रही है। 

ये है जेनेरिक दवा

ऐसी दवाएं जो बिना किसी प्रचार-प्रसार के अपने मूल केमिकल के नाम से जानी और बेची जाती हैं, उन्हें जेनेरिक दवा कहा जाता है। ये दवाएं किसी कंपनी से संबंधित नहीं होती, न ही इन पर किसी का पेटेंट राइट होता है। जेनेरिक दवाइयां जिस देश में बेची या बांटी जाती हैं, उस पर नियंत्रण वहां की सरकार का होता है। जेनेरिक दवाइयां दवा निर्माता के नाम से जानी जाती हैं और यह ब्रांडेड दवाओं से 30 से 40 प्रतिशत तक सस्ती होती हैं। 

इलाज में प्रभावी है जेनेरिक दवा

डॉक्टरों के अनुसार सस्ती और सर्वश्रेष्ठ होने के कारण जेनेरिक दवाइयां इलाज में काफी प्रभावी होती हैं। इनकी कीमत ब्रांडेड दवाओं के मुकाबले इसलिए कम होती हैं, क्योंकि उनका निर्माण या उत्पादन केवल फार्मूलेशन के आधार पर किया जाता है। जेनेरिक दवाओं में सारे तत्व (कम्पोजिशन) मौलिक दवाओं के समान होते हैं और ये विश्व स्वास्थ्य संगठन की आवश्यक दवाओं के मानदंडों के अनुरूप होती हैं। ब्रांडेड दवा में अनुसंधान खर्च, प्रचार खर्च आदि का कमीशन जोडऩे के कारण उनकी कीमत सामान्य से अधिक हो जाती है। 

अक्टूबर से फ्री, अभी लूट

देशभर के शासकीय अस्पतालों में मरीजों को इस वर्ष अक्टूबर से मुफ्त में दवा देने की कोशिश केंद्र स्तर पर शुरू हो चुकी है। योजना आयोग ने इस मद में 2012-13 वित्तीय वर्ष के लिए 100 करोड़ रुपए दिए हैं। स्वास्थ्य योजनाओं के मद्देनजर मुफ्त दवा देने की योजना को स्वास्थ्य के क्षेत्र में ‘रियल गेम चेंजर’ के तौर पर देखा जा रहा है। 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत इस कार्यक्रम पर 28560 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। इतने में देश की कुल आबादी के 22 प्रतिशत लोग सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ ले सकते हैं। सरकार भले ही मुफ्त में दवा देने का दावा कर रही है, लेकिन वर्तमान में सरकारी अस्पतालों में जेनेरिक दवा के नाम पर लूट मची है। इन अस्पतालों में मरीजों को चोट पर बांधने वाली पट्टी तक के लिए भटकना पड़ता है और सस्ती, डिस्काउंट वाली दवा देने के नाम पर उन्हें रेडक्रास मेडिकल शॉप पर लूटा जा रहा है। 



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