बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

कहानी नरेंद्र की...

सुनील शर्मा. बिलासपुर
दर्द में तड़प उठता है नरेंद्र

16 साल का नरेंद्र रह-रहकर उठने वाले दर्द से बेतहाशा चीखने लगता है। वह न तो किसी से मिलना चाहता है और न ही उसे कोई चीज अच्छी लग रही है। गुस्से में वह गले के सपोर्ट के लिए लगे पट्टे को खींचने लगता है। थोड़ी-थोड़ी देर में उसकी आंखों से आंसू बहने लगता है। जुबान से तो कुछ भी नहीं बोल सकता, अपनी इन्हीं हरकतों से दर्द बयां करता है।

 पिछले पखवाड़ेभर से वह अस्पताल के बेड पर दर्द से कराह रहा है, लेकिन उसकी सुध लेने के लिए कोई नहीं आया। डॉक्टर बताते हैं कि वह अपने पैरों पर चल सका तो यह किसी करिश्मा से कम नहीं। उसके ठीक होने की उम्मीद सिर्फ एक फीसदी है।

गुरुकुल पेंड्रा में कक्षा दसवीं का छात्र नरेंद्र सिदार 15 सितंबर को जिम्नास्टिक के अभ्यास के दौरान गंभीर रूप से घायल हो गया। जंप के दौरान वह सिर के बल गिरा और गले के पास रीढ़ की हड्डी टूट गई। गले की नस दबने के साथ ही क्षतिग्रस्त भी हो गई। गुरुकुल में उसे जिम्नास्टिक का अभ्यास पूर्व कबड्डी खिलाड़ी और व्यायाम शिक्षक आरसी यादव करा रहे थे। यादव सीनियर कोच हैं, लेकिन जिम्नास्ट के बारे में उन्हें जानकारी नहीं है। दरअसल, गुरुकुल में जिम्नास्ट कोच नहीं है। नतीजतन, एक गैर जानकार कोच की देखरेख में अभ्यास करते हुए नरेंद्र घायल हो गया।


 इतना ही नहीं, उसके इलाज में भी देर की गई। किसी तरह उसे अपोलो हास्पिटल में भर्ती कराया गया, जहां उसका आपरेशन करने से मामूली सुधार हुआ, लेकिन इलाज के बढ़ते खर्च के कारण परिजनों ने उसे डिस्चार्ज करा लिया। पैरालिसिस से पीडि़त नरेंद्र अब गनियारी के जन स्वास्थ्य सहयोग केंद्र अस्पताल में भर्ती है। डाक्टरों के मुताबिक उसे रिहेबलिटेशन के लिए रखा गया है। 

अब तक इलाज पर पौने तीन लाख रुपए खर्च हो चुके हैं। गनियारी हास्पिटल में उसे अन्य मरीजों से अलग आपरेशन थिएटर से लगे हुए कमरे में रखा गया है। वहां उसकी हालत शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूप से खराब है। रह-रहकर उसे चोट की वह घटना याद आ जाती है और वह सिहर उठता है। 

आपरेशन के बाद उसके गले में पाइप और पट्टा लगा है। जिसे वह बार-बार खींचने की कोशिश करता है। उसकी स्थिति पागलों जैसी हो गई है। बेड पर हो या व्हील चेयर में वह अपनी हरकत जारी रखता है। किसी भी नए आदमी को देखकर तो उसकी हालत और खराब हो जाती है, वह चीखने-चिल्लाने लगता है। पिता खुलास और चचेरा भाई वीरेंद्र उसकी देखभाल के लिए अस्पताल में हैं। उसकी गंभीर हालत को देखकर उनका भी धीरज जवाब दे देता है। वे बारी-बारी से कमरे के बाहर आकर बैठ जाते हैं। 


उनके चेहरे पर भी चिंता की लकीरें खींच गई है, क्योंकि उन्हें नरेंद्र के पहले की तरह होने का भरोसा नहीं रहा। खुलास ने कहा कि डाक्टर ने उनसे कहा है कि नरेंद्र की हालत ठीक हो जाएगी, लेकिन उसे नहीं लगता कि ये सच है। डाक्टर ने उन्हें दिलासा देने के लिए ऐसा कहा है। वह पहले की तरह कभी नहीं हो पाएगा। कुछ ऐसा ही मानना वीरेंद्र का भी है। पिछले 13-14 दिनों से वह नरेंद्र के साथ है, लेकिन वह उनसे बात नहीं कर पाता। इशारों में वह बात करता है और चिल्लाकर उन्हें बताता है कि उसे बहुत दर्द है।

 पिता और भाई चाहकर भी उसे दिलासा नहीं दे पाते। गांव गढग़ोढ़ी में मां तितर बाई को अपने बेटे की चिंता सता रही है और अपने पति से फोन पर बात करते हुए वह रो पड़ती है। खुलास अपने भाग्य को कोसते हुए भगवान से नरेंद्र को स्वस्थ करने के लिए प्रार्थना कर रहा है।

भाई वीरेंद्र और पिता खुलास
समस्या म हावन... का करन

नरेंद्र जांजगीर-चांपा जिले के सक्ती के पास ग्राम गढग़ोढ़ी का रहने वाला है। गुरुकुल से पहले वह अमलडीहा में पढ़ता था। उसके घायल होकर अपोलो में भर्ती होने से उसका परिवार बैकफुट में आ गया है। उसके गरीब परिवार को मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है।

 नरेंद्र के पिता खुलास राम ने दैनिक भास्कर को समस्याग्रस्त होने की जानकारी देते हुए बेटे के घायल होने पर दुख व्यक्त किया। उसने छत्तीसगढ़ी में कहा समस्या म तो हावन, का करन...सब किस्मत के खेल हे। भगवान बने-बने नइ रहेन देत हे...। डाक्टर मन कहत हे के ओखर नरी (गला) के हड्डी टूट गय हे। 


महीनों चलेगा इलाज, किस्मत से है जिंदा

गनियारी हास्पिटल के डाक्टर और नरेंद्र के केस को शुरू से ही देख रहे डा. रमन कटारिया का कहना है कि इलाज में महीनों लग सकते हैं। अभी उसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता। रिहेबलिटेशन के लिए उसे लाया गया है, जहां उसकी फिजियोथेरेपी सहित ट्रीटमेंट के कुछ अन्य तरीकों को आजमाया जा रहा है। अभी जितनी रिकवरी होनी थी वह हो चुकी है, अब छह महीने से सालभर तक स्लोवर रिकवरी के चांस है।

जब यह केस उनके पास आया था तो उन्होंने ही डा. शर्मा को नरेंद्र का ट्रीटमेंट करने कहा था। उसकी हालत इतनी खराब थी कि यदि उसे सिम्स से रायपुर भेजा जाता तो उसका बचना मुश्किल था। वह जिंदा है, यह उसकी बड़ी किस्मत है। यह एक गंभीर केस है, जिसे स्टाफ गंभीरता से ले रहा है।

चल सका तो चमत्कार

नरेंद्र का आपरेशन अपोलो हास्पिटल के न्यूरो सर्जन डॉ.सुनील शर्मा ने किया है। उन्होंने दैनिक भास्कर को बताया कि नरेंद्र की रिकवरी के 99 फीसदी चांस नहीं है। उसे बेहद गंभीर हाल में अपोलो लाया गया था। उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गई थी, जबकि गले की नस दबने के साथ ही खराब भी हो गई थी। वह छाती भी नहीं फुला पा रहा था क्योंकि उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। यह अपनी तरह का एक गंभीर केस था। उसके परिजन और गुरुकुल स्टाफ को बताया गया कि आपरेशन के बाद भी नरेंद्र ठीक हो पाएगा या नहीं, कहा नहीं जा सकता, लेकिन कोशिश की जा रही है। 

उनकी सहमति से आपरेशन किया गया। आपरेशन के दौरान उसके गले की नस को दुरुस्त किया गया है। साथ ही टूट चुकी रीढ़ की हड्डी को सपोर्ट दिया गया है। आपरेशन के बाद उसकी हालत में पहले से कुछ सुधार तो हुआ है, लेकिन चोट इतनी अधिक है कि आगे कुछ कहा नहीं जा सकता। वह शायद ही सामान्य लोगों की तरह अपना जीवन जी सके। अगर वह अपने पैरों पर चल सका तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं होगा।

इनका कहना है...
 

ऐसा नहीं है कि जिम्नास्ट के जानकार नहीं हैं। कई खिलाडिय़ों ने राज्य स्तरीय स्पर्धा में अपना जौहर दिखाया है। स्पोट्र्स में चोट लगना आम बात है। नरेंद्र के इलाज में विभाग और गुरुकुल स्टाफ ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। अब उसकी हालत ठीक है और उसका फिजियाथैरेपी होना है।
सीएल जायसवाल, संयुक्त संचालक, आदिम जाति विकास विभाग, बिलासपुर

मैं मानती हूं कि गुरुकुल में जिम्नास्ट का कोई स्पेशल कोच नहीं है, लेकिन सालों से बच्चे इसी तरह व्यायाम शिक्षक की निगरानी में प्रेक्टिस कर रहे हैं। उनके कार्यकाल में कभी कोई घटना नहीं हुई। नरेंद्र का गिरना एक सामान्य घटना है। मुझे इस बारे में ज्यादा नहीं पता इसलिए बेहतर होगा आप व्यायाम शिक्षक सुशील मिश्रा से बात करें।
प्रसन्ना बरला, प्राचार्य, गुरुकुल पेंड्रारो


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नरेंद्र की पूरी कहानी 29 सितंबर,1अक्टूबर को दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुई है।पेंड्रा एसडीएम सारांश मितर ने मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच के आदेश दिए है। देखना होगा कि नरेंद्र को न्याय मिलता है या एक बार फिर प्रशासन दोषियों पर कार्रवाई करने की बजाय उन्हें बचा लेगा।

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