गुरुवार, 26 मई 2011

कागजों पर उतारी सुनामी की पीड़ा



सुनील शर्मा.बिलासपुर

 
मेरे मित्र व्ही.व्ही रमण किरण ने पिछले ​दिनों शहर के राघवेंद्र राव सभा भवन स्थि​त वाचनालय में अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगाई. उनका कहना है कि ये चित्र सुनामी पर आधारित है. 

इस दौरान शहर के कला गुरुओ, कलाकारों, कलाप्रेमियों के साथ ही शहरवासियों ने भी शिरकत कर चित्रों की सराहना. बिलासपुर नगर पालिक  निगम की महापौर श्रीमति वाणी राव ने इस मौके पर घोषणा करते हुये कहा कि रमण के अब तक के संपूर्ण कला के क्षेत्र में किये गये योगदान को सहेजने का प्रयास आने वाले दिनों में किया जायेगा.
उन्होंने निर्माणाधीन आडीटोरियम के एक कक्ष में उनके द्वारा बनाये गये चित्रों, कोलाज आर्ट को स्थान देते हुये दर्शकों के लिये उपलब्ध कराने की मंशा जाहिर की.

पेश है रमण के प्रदर्शनी में लगाये गए कुछ चित्रों की झलक....... 

 चितेरे रमण के चित्र .....

 
 

 

 

 

 

 


दैनिक भास्कर ने प्रकाशित की खबर




रविवार, 1 मई 2011

कहानी जयप्रकाश की




-लैलुंगा से  लौटकर सुनील शर्मा

सिविल सर्विस (यूपीएससी) कान्वेंट में पढऩे वाले संपन्न लोगों की जागीर नहीं है इसमें साधारण परिवार के शासकीय स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों का भी चयन हो सकता है. इस बात को साबित किया है साधारण परिवार में जन्मे जयप्रकाश मौर्य ने. 
छत्तीसगढ़ के सुदूर वनांचल  लैलूंगा (रायगढ़) के जयप्रकाश ने कड़ी मेहनत और परिश्रम से आईएएस बनने के अपने सपने को साकार किया. यूपीएससी की परीक्षा में  9वीं रैंक और हिंदी माध्यम के लिहाज से वह पूरे देश में प्रथम स्थान पर रहे.

जयप्रकाश (घर में जेपी)के पिता एमएल मौर्य बताते हैं कि 1965में वे शिक्षक बनकर लैलूंगा ब्लाक के ही लमडांड आ गये लेकिन वे मूलत: बनारस से 17 किमी दूर वाराणसी तहसील के हीरमपुर गांव के रहने वाले हैं. 1965 से 1997 तक वे लमडांड में ही रहे फिर उनका तबादला लैलूंगा हो गया. जेपी ने पहली से आठवीं तक की पढ़ाई सरकारी स्कूल में की और उसके बाद वह रायगढ़ में हास्टल में रहकर पढऩे लगा.

उसने कभी कान्वेंट स्कूल में पढ़ाई नहीं की सच तो यह है कि एक शिक्षक की तब उतनी तनख्वाह होती भी नहीं होती थी कि वह अपने बच्चों को किसी कान्वेंट स्कूल में पढ़ा सके. उनकी चार संताने हैं दो पुत्र और दो पुत्री लेकिन जेपी सबसे अलग है, वह शुरू से ही शांत पर लोगों की मदद करने वाला है, उसे इसमें आनंद आता है. विनम्र होने के साथ दयालु भी है. भूकंप, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा आने पर हर बार अपने दोस्तों के साथ मिलकर चंदा इकट्ठा किया और प्रधानमंत्री राहत कोष में रुपये जमा करवाये, इसके लिये उसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी प्रशस्ति पत्र से सम्मानित भी कर चुके हैं. 

श्री मौर्य बताते हैं कि उन्हें या उनके परिवार के किसी भी सदस्य ने यह कभी नहीं सोचा था कि जेपी आईएएस अफसर बनेगा लेकिन उसने तो बहुत पहले ठान लिया था. यूपीएससी में उत्तीर्ण होने के बाद उसने बताया कि जब वह अपने दोस्तों के साथ पुरी, उड़ीसा जा रहा था तब एक कलेक्टर को राहत कार्य करवाते देखा था तभी उसके मन में उन कलेक्टर जैसा बनने की इच्छा जागी थी,

पर उस इच्छा को सपना बनाने और उसे फिर लक्ष्य बनाकर उसकी पूर्ति करने में उसे तेरह साल से भी अधिक समय लग गया. श्री मौर्य कहते हैं कि वे सोचते थे कि जेपी कोई बड़ा अफसर बनेगा लेकिन यूपीएससी में उसे इतना अच्छा रैंक मिलेगा, उन्होंने नहीं सोचा था. उन्हें लगता तो था कि उसमें प्रतिभा है पर उसके भीतर बड़ी प्रतिभा छिपी है इस बात का अंदाजा नहीं था.

जयप्रकाश की मां श्रीपति मौर्य कहती है किवह परिवार के साथ पड़ोसियों का भी दुलारा है और अपने दोस्तों से भी उसे बहुत प्यार है. वह जेपी को अपने अन्य बच्चों की तरह ही समझती थी और शायद अत्यधिक वात्सल्य के कारण उसकी प्रतिभा नहीं पहचान सकी. उन्होंने जयप्रकाश की यूपीएससी की तैयारी पर सिलसिलेवार प्रकाश डाला. वे कहती है कि 12वीं के बाद जेपी ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्रवेश के लिए परीक्षा दी थी और चयन होने पर वह वहां बीए की पढ़ाई करने लगा. दरअसल तब ही उसने यूपीएससी परीक्षा की तैयारी भी शुरू कर दी थी.
बीए के बाद इतिहास में एमए किया और गोल्डमैडल हासिल किया. यूपीएससी के लिए पूर्णरूप से जुटने और जूझकर तैयारी करने के लिए उसने दिल्ली का रूख किया.  उसे पहले तीन बार में असफलता हाथ लगी लेकिन 2010 में उसका चयन हो गया.

उसने कई बार परिवार को आर्थिक परेशानी से बचाने के लिए प्राइवेट नौकरी करने की इच्छा जताई ताकि वह अपना खर्च निकाल सके लेकिन उनके पिताजी ने सख्त हिदायत दी कि वह अपना पूरा ध्यान यूपीएससी की तैयारी में ही लगाये, नौकरी करने से उसका ध्यान बंट जायेगा और वह अपने लक्ष्य से भटक जायेगा अंततः पिता की सलाह काम आई और जयप्रकाश ने यूपीएससी में अपना परचम लहराया.