गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

छत्तीसगढ़ में बैगा महिलाओं की नसबंदी...!

सुनील शर्मा 
 सुकरिया ने गरीबी के कारण कराई नसबंदी
छत्तीसगढ़ में बैगा आदिवासियों की नसबंदी के चौंकाने वाले मामले सामने आये है. राज्य में प्रतिबंध के बाद भी बैगा आदिवासियों की नसबंदी हो रही है और यह प्रतिबंधित कार्य सरकारी महकमे के शासकीय शिविरों और स्वास्थ्य केंद्रों में हो रहा है.

गरीबी और अशिक्षा के जाल में जकड़े और विकास में पिछड़े अधिकांश बैगा परिवार नहीं जानते कि उनके लिए नसबंदी प्रतिबंधित है लेकिन स्वास्थ्य विभाग, जिसे इस संबंध में स्पष्ट निर्देश हैं,वह जान—समझकर इस पर रोक नहीं लगा रहा है.

बैगाओं की घटती जनसंख्या के कारण केंद्र सरकार ने 90 के दशक में एक आदेश के तहत छत्तीसगढ़ की पांच संरक्षित जनजातियों बैगा अबुझमाड़िया, बिरहोर, पहाड़ी कोरवा और कमार की नसबंदी को प्रतिबंधित कर दिया है.लेकिन इस प्रतिबंध का कोई भी असर नहीं हुआ है.

हाल ही में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर,कबीरधाम और नवगठित मुंगेली जिले में ऐसे कई मामले प्रकाश में आये हैं,जिसमें जान बूझकर बैगा महिलाओं की नसंबदी करा दी गई है. सरकारी अमले का है कि नवंबर 2011 में एक मामला मिलने के बाद इस पर पूरी तरह से कड़ाई बरती जा रही है .इसके बाद किसी भी बैगा की नसबंदी नहीं हुई है. मुंगेली के कलेक्टर त्रिलोक महावर का कहना है कि जब से मुंगेली जिला बना है, उनकी जानकारी में एक भी ऐसा मामला सामने नहीं आया है. लेकिन सच्चाई इससे कोसों दूर है.

बैगा बहुल लोरमी के खंड चिकिस्ता अधिकारी डाक्टर सीएम पाटले बताते हैं कि पिछले कई वर्षों से सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में बैगा आदिवासियों की नसबंदी होती रही है लेकिन उनके आने के बाद ऐसा नहीं हो रहा है. श्री पाटले का कहना है कि नवंबर 2011 में मेरे चार्ज लेने के दूसरे ही दिन एक बैगा महिला की नसबंदी का मामला आया था लेकिन उसके बाद मैंने इस पूरी तरह रोक लगा दी है. इस संबंध में सभी को सख्त हिदायत भी दी गई है.

काहे का प्रतिबंध
 एक महीने पहले नसबंदी कराने वाली कमला बैगा.
डा. पाटले भले ही दावा कर रहे हैं कि अब किसी भी बैगा की नसबंदी नहीं हो रही है लेकिन सूदूरवर्ती गांवों में घूमने के बाद यह दावा खोखला साबित हो जाता है.मुंगेली जिले की डूड़वाडोंगरी की सुकरिया बैगा ने पिछले महीने इलाके की कुछ महिलाओं के साथ डिंडौरी जिले के गोरखपुर स्वास्थ्य केंद्र में नसबंदी कराई है.

सुकरिया कहती है—''पहले वह नसबंदी के लिए लोरमी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गई थी लेकिन जब वहां मना कर दिया गया तो वह फगनी और अन्य महिलाओं के साथ गोरखपुर चली गई. वहां आपरेशन के बाद एक हजार रुपए मिले और वहां खाने-पीने का बढ़िया इंतजाम भी था.सुकरिया के पति बनिया बताते हैं कि उनकी पत्नी स्वास्थ्य विभाग की गाड़ी से गई थी.वहां से उन्हें लेने के लिए सूरजभान नामक आदमी भी आया था जो स्वास्थ्य कार्यकर्ता का पति है.

थोड़ी और पूछताछ करने पर पता चला कि सूरजभान अपनी स्वास्थ्य कार्यकर्ता पत्नी का लक्ष्य पूरा करने के लिए डूड़वाडोंगरी की फगनी के साथ मिलकर बैगा महिलाओं को नसबंदी के लिए मध्यप्रद्रेश के डिंडौरी जिले ले जाता है फगनी बैगा ने दस साल पहले नसबंदी कराई थी और तब से वह जैसे नसबंदी कराने वाली बैगा महिलाओं की आदर्श बन गई है.

किसी भी नसबंदी करानी हो तो वह फगनी से संपर्क करती है और फगनी खुद भी ऐसे महिलाओं की खोज करती है.फगनी बताती है कि उसके पति संचू बैगा ने उसे चेतावनी दी थी कि वह यदि नसबंदी नहीं कराएगी तो वह उसे छोड़ देगा. रिश्ता टूटने के डर से उसने नसबंदी कराई.

फगनी बताती है कि नसबंदी कराने वाली महिलाओं को बतौर प्रोत्साहन राशि 600 रुपए और उन्हें प्रोत्साहित करने वाले को 150 रुपए तो मध्यप्रदेश हितग्राही महिला को एक हजार और प्रोत्साहित करने वाले को चार सौ रुपए प्राप्त होते हैं.

महिलाओं को नसबंदी के लिए प्रेरित करती है फगनी बैगा.
फगनी कहती है कि बैगा परिवार बेहद गरीब है. अशिक्षा के कारण परिवार में बच्चों की संख्या बढ़ती जाती है लेकिन जब वे बड़े होते हैं तो उनके पालन-पोषण की समस्या होती है.इसलिए अधिकतर परिवार नसबंदी कराना चाहते हैं ताकि कम बच्चों का पालन-पोषण अच्छे से हो सके.

पिछले महीने मार्च में फगनी के साथ मंजूरहा की कमला पति जगतराम बैगा, शांति बैगा पति चैन सिंह बैगा, किसानीन पति पनका बैगा, बिराजो पति मेहतर बैगा और डूड़वाडोंगरी की लमिया पति विश्राम बैगा और सुकरिया पति बनिया बैगा और चकदा की कुंती बाई पति जेठू राम बैगा और मंगली पति लमतू बैगा मध्यप्रदेश के डिंडौरी जिले के गोरखपुर नसबंदी कराने गये थे. इन सभी ने गरीबी को प्रमुख वजह बताया है.

डुड़वाडोंगरी की उजियारो पति बैसाखू बैगा और मंजूरहा की बयन पति बाबूलाल बैगा ने पिछले साल लोरमी में नसबंदी करवाई थी.बयन कहती है कि सरकार ने नसबंदी पर तो प्रतिबंध लगा रखा है लेकिन हमारे विकास की उसे चिंता नहीं है. बच्चे पैदा तो हो जाएंगे लेकिन उनका पालन-पोषण नहीं हो सकता.

मंजूरहा गांव की कमला बैगा के तीन बच्चे पहले से ही हैं. जब चौंथा बच्चा पैदा हुआ तो घर की हालत देखते हुये उन्होंने अभी कुछ दिन पहले ही नसबंदी का ऑपरेशन करा लिया. कमला बैगा कहती हैं- “बैगाओं की नसबंदी पर रोक का हमें पता है लेकिन नसबंदी न करायें तो इतने बड़े परिवार को पालना संभव नहीं है.”

यह रिपोर्ट 5 अप्रैल 2012 को दैनिक छत्तीसगढ़ के मुख्य पृष्ठ पर बतौर बैनर प्रकाशित हो चुकी है .

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