कमल दुबे, बिलासपुर
लाहौर में स्कूली पढ़ाई के बाद इंडिया की पंजाब यूनिवर्सिटी से समाज शास्त्र में पोस्ट ग्रेजूएट व पी एच डी के बाद दिल्ली के हिन्दू राव कालेज में प्रोफ़ेसर रहे डाक्टर प्रभुदत्त खैरा रिटायरमेंट के बाद विगत 15 बरसों से छतीसगढ़ के बिलासपुर ज़िले के अचानकमार अभ्यारण्य के वनग्राम लमनी में बैगा आदिवासियों के बीच रह कर अपना वानप्रस्थ व्यतीत कर रहें हैं। इस क्षेत्र का बच्चा - बच्चा उन्हे '' दिल्लिवाले साब '' के नाम से जानता है।
पिछले चुनाव में मतदान के दिन उस क्षेत्र गुजरा तो देखा कि ट्रक व ट्रेक्टर से वोटरों कि ढुलाई चल रही है। लमनी में डाक्टर खैरा दिख गये, उनसे पूछा कि इन आदिवासियों के लिये चुनाव क्या मायने रखता है?
उनके जवाब का संक्षेप- बैगा आदिवासी का राजनीति से कोई लेना-देना नही है, अगर इनको
ढॉ कर ना लाया जाए तो ये वोट डालने कभी न आयें। जिन गावों में ये बहुसंख्य हैं वहाँ भी सरपंच किसी अन्य जाति का है! इनको तो बस जंगल में रहने कि आज़ादी चाहिये, ये तो खेती भी नही करना चाहते, राज्य तो इनके रहन सहन में बाधा डालता है, इनकी संसकृति को सहेजने के बजाय बदलने में लगा है।
आफ़्रिका कि तर्ज़ पर कहा जा सकता है कि ये स्टेटलेस सोसायटी है। कठिन से कठिन स्थिति में भी ये किसी से कुछ माँगे बिना अपना गुजारा कर लेते हैं। शराब इनके लिये पवित्र पानी है, हाँ कुछ लोग कभी कभी ज्यादा पी लेते हैं लेकिन पीने के बाद भी मेहनत में कमी नही करते । हमें इनसे बहुत कुछ सीखना है, इनका जंगल का ज्ञान गजब का है, इनके घर आपस में कभी जुड़े नही रहते, समाज में रहते हुए भी अलग रहना व अलग रहते हुए भी समूह में रहना, क्या जीवन शैली है।
Nice
जवाब देंहटाएंthanks giri ji yadi aapne kuch aur likha hota to mujhe aage likhne me prerana milti
जवाब देंहटाएंआपने आदिवासियों के जंगल प्रेम को एक प्रेरणा के रूप में सामने रखा हमें उनसे बहुत कुछ सिखने की जरुरत है.............................
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