शनिवार, 25 सितंबर 2010

अयुद्धा जन्मभूमि में मजहबी युद्ध


कनक तिवारी

राम भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े योद्धा हैं. रावण से उनका युद्ध एक सामंतवादी, अत्याचारी, बौद्धिक अहंकारी साम्राज्यवाद की ताकत से था. राम ने भील, वानर, दलित, किन्नर, आदिवासी की मदद से उन राक्षसी मूल्यों का नाश किया जो आज फिर अमरीकी सरमाएदारों की छत्रछाया में पनप रहे हैं.



सुप्रीम कोर्ट ने देश को राहत देते हुए एक बार फिर जनता के विवेक को झकझोरने की ऐतिहासिक कोशिश की है. हिंदू और मुस्लिम कट्टरपंथी उस पर भी फब्तियां कस रहे हैं. सभी पक्ष इस संवेदनशील धार्मिक-सांस्कृतिक मसले को राजनीतिक चश्मे से देख रहे हैं. राम इस पूरे मुद्दे के केंद्र में रखे जाते हैं, लेकिन उनका केवल कंधा इस्तेमाल किया जाता है. उनके विवेक, ज्ञान, कर्म और धर्म मीमांसा का भारतीय लोकतंत्र के लिए कोई अर्थ नहीं रह गया है.

एक-एक कर प्याज के छिलकों की तरह यदि तर्कों की बखिया उधेड़ी जाए तो आश्चर्यजनक परिणाम सामने आते हैं.

1. इसमें कहां शक है कि राम का चरित्र भारत में ही पैदा हुआ है. बाल्मीकि संभवत: पहले कवि हैं जिनकी कल्पना या आंखों देखे विवरण से राम का चरित्र लिखा गया है. इतिहास के पास राम का कोई प्रामाणिक ब्यौरा नहीं है. इतिहास लेखन की वैसी कोई परंपरा भारत में नहीं रही है. फिर भी राम को एक मिथक, अवतार या प्रतीक पुरुष मानने के बदले उन्हें अयोध्या में मनुष्य के रूप में जन्मा माना जा रहा है.

2. इसमें भी कोई शक नहीं है कि नए धर्म के रूप में जन्में इस्लाम के अनुयायी सम्राट बाबर भारत में कोई पांच सौ वर्ष पहले आए. बाबर के नाम पर ही बाबरी मस्जिद अयोध्या में बनाई गई थी. वहां पहले राम मंदिर होने की बात कही जा रही है, जिसे मुगल बादशाह के काल में तोड़ दिया जाने का आरोप है.

3. अंगरेजी सल्तनत के भारत में रहते हिन्दू-मुस्लिम पक्षों के विवाद गहराया और अदालती कार्रवाई शुरू भी हुई. अंगरेज ही तो भारत में हिंदू-मुसलमान झगड़ों को लगातार हवा देता रहा है. उसने इस बड़े विवाद का बड़ा फायदा उठाया.

4. राजीव गांधी के प्रधानमंत्री काल में कांग्रेस में घुसे संघ परिवारीय तत्वों ने उनसे राम मंदिर के ताले खुलवाकर ऐतिहासिक गलती करवाई. ऐसी ही गलती युवा प्रधानमंत्री से शाहबानो के मामले में संसद के जरिए भी करवाई गई. साफ है कांग्रेस, हिन्दू और मुस्लिम फिरकापरस्तों के सामने घुटने टेकते आई है.

5. पहले भी राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को राय देने के लिए यह मामला रेफर किया था. सुप्रीम कोर्ट ने कोई राय नहीं देते हुए रेफरेन्स को लौटा दिया था. जस्टिस वर्मा ने ही शिवसेना वाले मामले में हिन्दुत्व को लेकर दक्षिणपंथियों के लिए सहूलियत वाला फैसला दिया था.

6. मौजूदा प्रकरण लखनऊ बेंच में ठीक हालत में नहीं था. एक न्यायाधीश शर्मा ने तो यह भी आरोप लगाया कि उनसे कुछ मुद्दों पर दूसरे दो जजों ने सलाह ही नहीं ली. जस्टिस शर्मा 30 सितंबर को रिटायर भी हो जाएंगे.



7. रमेशचंद्र त्रिपाठी नामक सज्जन यदि इस मामले में कभी पक्षकार नहीं रहे हों तो क्या फर्क पड़ता है. संविधान के अनुच्छेद 21 तथा 32 सहित मूल अधिकारों के परिच्छेद में प्रत्येक भारतीय को अधिकार है कि, वह अपने तथा देशवाशियों के मूल अधिकारों के प्रवर्तन के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाए. इस सिलसिले में हिन्दू-मुस्लिम कठमुल्ला तत्व एक स्वर से त्रिपाठी पर आरोप लगा रहे हैं.

8. सुप्रीम कोर्ट ने अब तक इस विवाद में फूंक-फूंककर ही कदम रखे हैं. वह रवैया जारी है. जस्टिस गोखले ने अंधेरे में तीर मारने की शैली में टिप्पणी जरूरी की है, यद्यपि वह सद्भावनापूर्ण है. दोनों पक्ष पहले से कह रहे हैं कि समझौता अब संभव नहीं है क्योंकि जब पचास, साठ वर्षों में पक्षकारों में समझौता नहीं हो सका तो अब क्या होगा? क्या पुरानी पक्षकार जीवित भी हैं? क्या ऐसी लड़ाइयां सदियों तक चलनी है?

9. संघ परिवार और सुन्नी बोर्ड दोनों हाईकोर्ट से फैसले चाहते हैं, जिसका वे पालन भी करना चाहते हैं? क्या ऐसा वे कर पाएंगे? यदि फैसला मुसलमानों के पक्ष में होता तो बिहार के चुनावों में भाजपा को फायदा नहीं होता? यदि हिन्दुओं के पक्ष में होता तो कश्मीर में क्या होता? आतंकवादी क्या करते? क्या धार्मिक और राजनीतिक नेता कट्टरपंथी तत्वों और अनुयायियों को बेकाबू कर पाते?

10. सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल इतने ज्ञानी क्यों हैं कि उन्होंने मामला पहले फौजदारी बेंच को भेज दिया, फिर बेंच ने ही उसे लौटा दिया. इतने गंभीर मामले में भी यह हालत है जैसी सुरेश कलमाड़ी की कॉमनवेल्थ खेलों को लेकर है.

11. 28 सितंबर को सभी पक्ष क्या जवाब पेश भी कर पाएंगे या और वक्त मांगेंगे? क्या सुप्रीम कोर्ट 29 सितंबर को ही मामला हाईकोर्ट को भेज पाएगा? क्या रिटायर होने वाले न्यायाधीश शर्मा उसी दिन अंतिम फैसला लिख भी पाएंगे? सुप्रीम कोर्ट ने यदि कुछ सलाह दे दी तो क्या होगा?

*रविवार से साभार

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें