शनिवार, 7 मई 2011

थम नहीं रहा शिकार

सुनील शर्मा 


वह दिसंबर का महीना था जब कबीरधाम जिला मुख्यालय से 80 किमी दूर कोकदुर थाना क्षेत्र के अमनिया गांव में शेर का शव ग्रामीणों ने देखा. शव सडक़र कंकाल की शक्ल अख्तियार कर चुका था. शेर को एंडोसल्फान नामक कीटनाशक देकर मारा गया था.  इस मामले को छिपाने का प्रयास अफसर लगातार करते रहे. डीएफओ और एसडीओ ने इसे बड़े लकड़बघ्घे का शव बताया लेकिन रायपुर से जांच टीम ने इसकी पुष्टि शेर के शव के रूप में की. यह इलाका अचानकमार टाईगर रिजर्व और कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के गलियारे का जोड़ता है और इसे बाघों का विचरण क्षेत्र माना जाता है.

झूठ गढऩे में माहिर वन विभाग के अफसरों को जब भी मौका मिला शिकार पर पर्दा डालने से नहीं चुके. राज्य के बाहर पकड़े गए शिकारियों ने कई बार छत्तीसगढ़ के जंगलों में वन्यप्राणियों का शिकार करना स्वीकार किया है पर विभाग इससे पल्ला झाड़ता रहा है. राज्य में 2008 से 2010 के भीतर ही 45 से अधिक मामले अवैध शिकार के दर्ज किये जा चुके है. मृत जानवरों में हाथी, तेंदुए के अलावा राष्ट्रीय पशु बाघ का शिकार शिकारियों ने खाल, नाखून और मांस के लिए किया है. यहां 2010-11 में शिकार के 35 मामले सामने आये है जिसमनें 170 आरोपियों की गिरफ्तारी हुई है.
सूत्रों का कहना है कि छत्तीसगढ़ के जंगलों में शिकार के पीछे किसी अंतर्राष्ट्रीय गिरोह का हाथ है, पर अधिकारियों की शिकार पर पर्दा डालने की प्रथा और झूठ गढऩे की आदत की वजह से शिकार के मुख्य आरोपी बचते रहे हैं. अधिकतर मामले में ग्रामीणों की धरपकड़ कर खानापूर्ति की जाती है. शिकारियों के हाथ कितने लंबे है इसका अंदाजा तो इस बात से ही लगाया जा सकता है कि संरक्षित वनों में भी वन्यप्राणियों का शिकार हो रहा है. 13-14 अपैल की रात अचानकमार टाईगर रिजर्व एरिया में शिकार की नीयत से हुई फायरिंग ताजा उदाहरण है. 

668 वर्ग किमी में फैले अचानकमार टाईगर रिजर्व एरिया में छपरवा के पहले एक देवी मंदिर स्थित है. ग्रामीणों के मुताबिक घटना की रात मंदिर में भंडारा था और बड़ी संख्या में ग्रामीण वहां मौजूद थे. अचानक ग्रामीणों ने फायरिंग की आवाज सुनी और आवाज की दिशा में भागे. ग्रामीणों ने शिकारियों को दौड़ाया और रिवाल्वर मौके पर ही छूट गई. शिकारी कार पर सवार होकर फरार हो गये. ग्रामीणों ने घटना की सूचना छपरवा रेस्ट हाउस में मौजूद रेंजर डीआरसी भगत की दी.
श्री भगत दल-बल के साथ मौके पर पहुंचे. आसपास की तलाशी में उन्हें एक रिवाल्वर और खुखरी मिली. वायरलेस सेट पर फायरिंग की सूचना देते हुये सभी बेरियर को अलर्ट किया गया. किसी भी वाहन को बगैर चेक किये नहीं गुजरने देने की सख्त हिदायत दी गई. इधर पटैता, अचानकमार,लमनी बेरियर में मौजूद कर्मचारी सख्म निगरानी रखे हुये थे लेकिन पूरी रात जांच के बाद भी शिकारियों की धरपकड़ नहीं हुई. श्री भगत ने मौके पर मिली रिवाल्वर का पंचनामा किया.

सूत्रों का कहना है कि रिजर्व एरिया में बसे गांव के किनारे रात में कोटरी, चीतल आदि वन्यप्राणी अक्सर आ जाते हैं. इनके शिकार की नीयत से ही शिकारी वहां आये थे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली क्योंकि मौके से किसी भी वन्यप्राणी का शव बरामद नहीं हुआ है. शिकार में पुलिस का एक अधिकारी भी शामिल था जबकि अन्य वे लोग थे जो पहले भी जंगल आते रहे हैं और जिन्हें वन्यप्राणियों के विचरण का स्थान मालूम है. जब्त रिवाल्वर पुलिस अधिकारी की थी और उसे घर पहुंचने पर पता चला था कि रिवाल्वर मौके पर ही गिर गई. 

बताया जाता है कि घटना के तीसरे दिन पुलिस अधिकारी ने यह कहते हुये अपनी रिवाल्वर वापस ली कि वे नक्सलियों की सूचना सर्च कर रहे थे और रिवाल्वर मौके पर गिर गई. हालांकि फायरिंग क्यों हुई इस पर कोई बात नहीं हुई.
इस मामले में एक बार फिर अधिकारी झूठ गढऩे लगे. मौके पर मौजूद रेंजर श्री भगत ने इस मामले में बयान देने को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर बताया और उच्चाधिकारियों से सवाल-जवाब करने की सलाह दी. इधर अधिकारी मामले पर पर्दा डालते रहे. अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय अधिकारी उनका बचाव कर रहे हैं. सूत्रों की माने तो वन विभाग के अफसरों को अपराधियों का नाम मालूम है लेकिन वे जान बूझकर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं. शनिवार को घटना की जानकारी होने पर शहर के कुछ लोगों ने सीएफ आईएन सिंह  और डीएफओ एसडी बडग़ैया से मुलाकात कर अपराधियों को गिरफ्तार करने की मांग की. सीएफ ने तीन अधिकारियों की टीम बनाई है जो मामले की जांच कर उन्हें रिपोर्ट सौंपेगी. हालांकि इस टीम में वे अधिकारी भी शामिल है जिन पर कथित अपराधी पुलिस अधिकारी का रिवाल्वर वापस करने और उसका बचाव करने का संदेह है.

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 में अचानकमार अभयारण्य को टाईगर रिजर्व एरिया घोषित कर पांच गांवों को खुडिय़ा जलाशय के पास बसाया गया है. विस्थापन की सूची में 17 गांव और है जिन्हें विस्थापित किया जाएगा.
जानकारों का कहना है कि यदि सभी गांव अन्यत्र बसा दिये गये तो शिकार के मामले पहले से और बढ़ जायेंगे. शिकारी बेखौफ शिकार करेंगे. कर्मचारी जिनकी संख्या वैसे ही कम है क्या वन्यप्राणियों को बचा पाएंगे. मालूम हो कि  प्रदेश के तीन टाईगर रिजर्व इंद्रावती, उदंती-सीतानदी और अचानकमार में कुल 420 में से 219 पद लंबे समय से रिक्त है. कर्मचारियों की कमी भी वन्यप्राणियों की सुरक्षा पर सवाल खड़े करता है. 

पिछले साल बिलासपुर में दो लोगों को शेर की खाल के साथ पकड़ा गया था और इसके पहले भी वन्यप्राणियों के खाल,नाखून, दांत के साथ अपराधी पकड़ में आते रहे हैं. शिकार तो हो रहे हैं लेकिन वन विभाग के अफसरों को जैसे झूठ गढऩे की आदत पड़ चुकी है. वे कभी भी इस बात को स्वीकार नहीं करते कि जंगल में वन्यप्राणी असुरक्षित है. अचानकमार टाईगर रिजर्व में फायरिंग की घटना के बाद एक बार फिर से शिकार  के बदस्तूर जारी होने की बात खुलकर सामने आ गई है.

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