गुरुवार, 2 सितंबर 2010

खाप पंचायतें या पाप पंचायतें

रघु ठाकुर

पिछले कुछ माहों में खाप पंचायतों का हस्तक्षेप बढ़ा है और सगोत्र विवाह को अमान्य करते हुए ऐसे विवाह करनेवाले युवक-युवतियों को ग्रामीण समाज की खाप पंचायतों ने कानून हाथ में लेकर स्वत: दंडित करने के फैसले किए.


अनेकों मामलों में तो एक या दोनों विवाह करने वाले पक्षोंकी हत्यायें कर दी गई हैं. अंतरजातीय विवाहों के प्रति भीइसी प्रकार की सामाजिक कट्टरता का प्रदर्शन हुआ है. चाहे झारखंड की निरूपमा पाठक का मामला हो या दिल्लीकी बबली का, संबंधित परिवारों के लोगों ने अपने घर कीलड़कियों की हत्या करना पसंद किया परंतु अंतरजातीयविवाहों को स्वीकार नहीं किया.

ऐसी घटनायें यदा-कदा पहले भी होती रही हैं परंतु वे अपवाद स्वरूप थीं. यह आश्चर्यजनक है कि शिक्षा औरतकनीक का प्रसार और उपयोग बढऩे के बाद ऐसी घटनाओं में कमी होने के बजाय अंतरजातीय विवाहों केपक्षकारों को दंडित करने की घटनायें ज्यादा बढ़ रही हैं.

लगभग चालीस वर्ष पूर्व 1960 के दशक में भोपाल के मेडिकल कालेज के एक डाक्टर की हत्या अंतरजातीयविवाह रोकने के लिए हुई थी और इसी प्रकार कुछ वर्षों पूर्व नीतीश कटारा हत्याकांड हुआ, वह भी जातीय कारणोंसे. इन घटनाओं की चर्चा मीडिया ने काफी गंभीरता से की और अपराधियों को दंड दिलाने में महती भूमिका अदाकी है.

हरियाणा के मिर्चीपुर गांव में दलित परिवारों के लडक़ों के माता-पिता को दंड का शिकार बनाया गया. हरियाणा, पंजाब और पश्चिम उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से अदालतों में उन आवेदकों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है, जो अंतरजातीय शादी करने की वजह से जातीय समाज की हिंसक प्रतिक्रिया से भयभीत है तथा न्यायपालिका केसमक्ष सुरक्षा के लिये आवेदन लगाने को लाचार है.

अनेकों प्रकरणों में न्यायपालिका ने ऐसे प्रेमी युगल को सुरक्षा प्रदान की है. तथा पंजाब के एक न्यायाधीश ने तोऐसे बढ़ते आवेदनों पर चिंता प्रकट करते हुए प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई है कि प्रशासन तंत्र तब तक हस्तक्षेपनहीं करता जब तक कि न्यायपालिका आदेश दें. जबकि प्रशासन का यह वैधानिक दायित्व होता है कि वहनागरिकों को सुरक्षा प्रदान करे.

हमें इन खाप पंचायतों के तर्क पर बहस करनी होगी. इन खाप पंचायतों का कहना है कि सगोत्र विवाह हिंदू धर्म केअनुसार वर्जित है. क्योंकि सगोत्र युवक और युवतियां एक ही रक्त वाले हैं तथा भाई-बहन जैसे है. कुछ लोगों नेऔर आगे जाकर तर्क दिया कि गांव के लडक़े और लड़कियां भले वे भिन्न जाति या गोत्र के हों पर एक-दूसरे कोभाई-बहन जैसा मानते हैं या मानने चाहिये ताकि ग्रामीण समाज में विकृतियां फैल पायें.

जहां तक गोत्र का प्रश्न है, गोत्र जाति का छोटा स्वरूप है और जाति बड़ा गोत्र है. अगर एक गोत्र के लोगों के पुरखे भीएक ही माता-पिता से पैदा हुए होंगे, अगर रक्त या समान माता-पिता के तर्क पर सगोत्र विवाह पर निषेध होनाचाहिये तो फिर जातीय शादियों को भी प्रतिबंधित करना चाहिये क्योंकि वही लोग कि जो लोग लंबे अतीत से एकमाता-पिता की संतान होने के बावजूद भी जाति में शादी होने को उचित मानते हैं तथा सगोत्र के मामले में अपनेतर्क को अमान्य करते हैं. काका कालेलकर ने इसी आधार पर जाति के बाहर शादी के पक्ष में कहा था.

सगोत्र विवाह को जो लोग हिंदू धर्म या परंपराओं के विरूद्ध मानते हैं और जाति विवाह को जो लोग धर्म औरपरंपराओं के अनुकूल मानते हैं, यह दोनों दृष्टिकोण अतार्किक और गलत हैं. फिर ऐसी मान्यताओं के नाम परकट्टरतायें और हिंसा किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार नहीं हो सकते. दरअसल जातिवाद, सगोत्रवाद या खापपंचायतवाद कमजोर समाज की ऐसी बीमारियां हैं, जो ताकतवर के सामने झुक जाती हैं और कमजोर लोगों कोदबाने का प्रयास करती हैं.

जहां तक गांव के भाई-बहन के रिश्ते का सवाल है तो यह तो इतिहास की घटनाओं से सिद्ध होता है किसी तर्कसे. भगवान कृष्ण की जो गोपिकायें थी, क्या उनमें एक ही गांव की नहीं थी. कस्बा शहर एक प्रकार से बड़े गांव हैंऔर फिर इस तर्क पर चला जाये तो कस्बों और शहरों में भी परस्पर विवाह प्रतिबंधित करना होगा.
श्रीमती इंदिरा गांधी की शादी पारसी व्यक्ति के साथ हुई थी और हरियाणा, उत्तरप्रदेश तथा पंजाब के इन्हीं खापपंचायतों के सदस्यों ने इन्हें भारी मतों से जिताया था. स्व. राजीव गांधी का विवाह एक ईसाई महिला से हुआ था, परंतु खाप और जाति पंचायतों को कोई आपत्ति नहीं हुई.

हमारे देश में लंबे समय का दर्शन रहा है-समरथ को नहिं दोष गोसाई, आज यथावत जारी है. हमने समाज कोलोकतंत्र के अनुकूल ढालने का प्रयास नहीं किया है बल्कि लोकतांत्रिक प्रतिनिधि वोटों की खातिर समाज को उनकुपरंपराओं की ओर ढकेलते हैं और कट्टरपंथी समाज के सामने घुटने टेक देते हैं. स्व. राजीव गांधी ने मुस्लिमकट्टरपंथ के सामने घुटने टेके थे और लगभग सौ वर्ष से लागू महिलाओं को निर्वाह भत्ता का नियम निजी कानूनके नाम पर समाप्त कर दिया था. आज उसी निजी कानून का तर्क खाप पंचायतों के नाम पर हिंदू कट्टरपंथी दे रहेहैं.

हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला, कांग्रेस पार्टी के सांसद नवीन जिंदलऔर किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत इन खाप पंचायतों का केवल समर्थन कर रहे हैं बल्कि कुछ तो उनके साथआंदोलन की धमकी दे रहे हैं.

निजी कानून का जनतांत्रिक समाज में कोई स्थान नहीं हो सकता. संसदीय लोकतंत्र में समाज की बेहतरी के लिएऔर व्यापक हितों को ध्यान में रखकर व्यक्ति और समूह स्वयंभू अपने अधिकारों और परंपराओं को राज्य केकानून के समक्ष त्यागते हैं. समाज का व्यापक विवेक व्यक्ति या छोटी इकाई के विवेक से सदैव श्रेष्ठ और श्रेयस्करमाना जाता है. लोकतांत्रिक व्यवस्था में कानून का राज्य लागू होता है. बड़े से बड़े अपराधी को भी केवल वैधानिकप्रक्रिया से दंडित किया जा सकता है. व्यक्ति शिकायतकर्ता हो सकता है परंतु स्वत: निर्णय करने वाला न्यायाधीशनहीं हो सकता.

समाज में फैले रही यौन विकृतियों के बारे में वास्तव में अगर पंचायत वालों को चिंता है तो उन्हें कारणों की खोजकरना चाहिये जो समाज में विकृतियां फैला रहे हैं. सैकड़ों टीवी चैनलों के माध्यम से इस प्रकार नग्नता भरेकार्यक्रम रोज आते हैं. समाचार पत्रों के मुख्य पृष्ठ पर जिस प्रकार अर्धनग्न चित्र छापे जाते हैं, इनके प्रति ये खापपंचायतें कभी आक्रोश व्यक्त नहीं करतीं.

सभ्यता को नष्ट करने के इन वास्तविक केंद्रों के प्रति अगर वे चिंता करतीं तो उचित होता बजाय इसके कि फैलानेतंत्र के तो वे हिस्सेदार बने और फिर विकृतियों के प्रति शिकायत करे.

पता नहीं किस सोच के आधार पर मीडिया ने हत्याओं कोआनर किलिंगकहना शुरू कर दिया. क्या इन हत्याओंसे समाज के सम्मान की रक्षा हो सकती है? सम्मान की परिभाषा क्या है ? ये बेगुनाह हत्यायें हैं, जिनके पीछेअंधविश्वास अतार्किकता कारण है. अगर समाज या खाप पंचायत इन्हें अनुचित मानती हैं तो इनका बहिष्कारहो सकता है, परंतु हत्या करना एक जघन्य अपराध है, जो अक्षम्य है और खाप पंचायतों का पाप भी.

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