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मेरे पिताजी भतीजे अंकित के साथ. |
सुनील शर्मा
सडक़ किनारे मैंने
मोटरसाइकिल रोक दी.
उतरे एक बुजुर्ग और
एक आठ साल का बच्चा.
बुजुर्ग की उंगली थामे बच्चा
निर्भय होकर चलने लगा
सडक़ के किनारे-किनारे.
बुजुर्ग काफी सावधानी से बच्चे को
अपने साथ लेकर जा रहे थे.
मैं कुछ देर तक खामोश खड़ा देखता रहा.
वैसे कोई खास बात
नहीं थी उस दृश्य में
फिर क्यों मैं देर तक निहारते रहा
उनको जाते हुए?
पहली बार मेरे भीतर एक चाह जगी
और उसके साथ एक पीड़ा भी.
बचपन में काश मैंने भी थामी होती
किसी बुजुर्ग की उंगली.
और चल पाता निर्भय होकर.
तो मेरे भीतर का रोज बढऩे वाला
डर इतना बड़ा न होता.
मुझे तो दादा की वह तस्वीर भी
याद नहीं जो बरसो पहले
देखी थी बुआ के घर पर.
बुआ कहते नहीं थकती थी,
उस पुरानी श्याम- श्वेत तस्वीर में
कितने सुंदर लगते थे दादाजी.
एक बार बहुत पूछने पर
पिताजी ने बताया था
अमावस के मेले में खिंचवाई थी
उन्होंने वह तस्वीर,
और फोटोग्राफर ने पैसे लेने की बजाय
उनके पाँव छू लिए थे .
... bhaavpoorn rachanaa, badhaai !!
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