शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

जिंदगी के पन्ने


- सुनील  शर्मा 

जिंदगी  के कुछ पन्ने

मुड़े हुये होते हैं.

पर सच तो यह भी है कि

ये मुडक़र भी आपस में

जुड़े हुये होते हैं.


कुछ पन्नों पर कुछ लिखा होता है,

तो कुछ पन्ने कोरे ही रह जाते हैं.

पन्नों पर लिखकर उसे मिटाना

या उस पर लिखे हुये को छिपाना

21 वीं सदी में आसान हो गया है.


पर इस सदी में भी

जीवन के पन्नों पर लिखे को

मिटाना मुश्किल है.

मेरे जीवन के पन्नों पर भी काफी कुछ लिखा है

कभी फुर्सत मिली  तो जरूर बताउंगा....


( चांपा रेलवे स्टेशन पर शालीमार ट्रेन के रूकने के दौरान दिन बुधवार 2 फरवरी 2011 सुबह 10.20 बजे, कविता एक तस्वीर को देखकर बन गई जो तब कुछ ही देर पहले मैंने खींची थी )